नासा के नए अध्ययन में हुआ खुलासा, जानें पंजाब और हरियाणा में जलने वाली पराली से कैसे खराब होती है दिल्ली की हवा, सरकार को भी बताए गए ये उपाय।
from Latest And Breaking Hindi News Headlines, News In Hindi | अमर उजाला हिंदी न्यूज़ | - Amar Ujala
https://ift.tt/2rD4scu

नासा ने अपने नए अध्ययन में खुलासा किया है कि दिल्ली के प्रदूषण और पंजाब व हरियाणा में जलने वाली पराली के बीच सीधा संबंध है। पराली जलाए जाने से दिल्ली की हवा जहरीली हो रही है और यह अपने घातक स्तर पर पीएम 2.5 स्तर पर पहुंच रही है। अकसर मानसून के बाद और सर्दी शुरू होने से पहले दिल्ली में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है जिससे लोगों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अमेरिकी एजेंसी के वैज्ञानिकों ने बताया कि उनके नए अध्ययन के मुताबिक पंजाब और हरियाणा में फसलों के अवशेष जलाए जाते हैं जिसे आमतौर पर पराली भी कहा जाता है, इससे ही दिल्ली के प्रदूषण में इजाफा होता है। क्योंकि पंजाब और हरियाणा की हवा यहां आती है।
फसलों के जलने से दिल्ली की हवा पर पड़ने वाले प्रभाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आम दिनों में दिल्ली में पीएम 2.5 का स्तर 50 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होता है, जबकि नवंबर की शुरुआत में यह स्तर 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाता है। वहीं 2016 की सर्दियों में यह समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिली जब लोगों का घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया था। उस वक्त पराली जलाए जाने के समय पीएम 2.5 का स्तर 550 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया था। वहीं 5 नवंबर 2016 को तो यह स्तर 700 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच गया।
वहीं इस अध्ययन में उन्होंने यह भी बताया है कि पराली के अलावा 95 लाख स्थानीय वाहन, उद्योग और निर्माण कार्य भी दिल्ली के प्रदूषण का कारण हैं। इसके अलावा अध्ययन में सरकार को स्मॉग समस्या से निपटने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय भी बताए गए हैं। इसके लिए बीते 15 साल (2002-2016) के सैटेलाइट डाटा का विश्लेषण किया गया था। सुझाव के तौर पर बताया गया है कि यदि पराली अक्टूबर में जलाई जाए तो इससे हवा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
वहीं इस अध्ययन में उन्होंने यह भी बताया है कि पराली के अलावा 95 लाख स्थानीय वाहन, उद्योग और निर्माण कार्य भी दिल्ली के प्रदूषण का कारण हैं। इसके अलावा अध्ययन में सरकार को स्मॉग समस्या से निपटने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय भी बताए गए हैं। इसके लिए बीते 15 साल (2002-2016) के सैटेलाइट डाटा का विश्लेषण किया गया था। सुझाव के तौर पर बताया गया है कि यदि पराली अक्टूबर में जलाई जाए तो इससे हवा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
from Latest And Breaking Hindi News Headlines, News In Hindi | अमर उजाला हिंदी न्यूज़ | - Amar Ujala
https://ift.tt/2rD4scu
No comments:
Post a Comment